जीना इसी का नाम है

  ज़िंदगी की हक़ीक़त को बस हमने जाना है 

दर्द में अकेले और ख़ुशियों में सारा ज़माना है।"


मुझको Visa नहीं मिला जर्मनी का तो सवाल था कि करूँ क्या । घर वापस , लेकिन सारे रास्ते बंद हो चुके थे । England , फिर पैसे की तैयारी , इम्तिहान की तैयारी । Syndicate बैंक से क़र्ज़ लिया था बड़ी मुश्किल से क्योंकि security के नाम पर तो मेरे पास दिखाने को कुछ था नहीं । वहाँ भी पैरवी लगानी पड़ी थी । 


या फिर जीविका का साधन बदल लूँ ।

इसी सोंच में दिल्ली की सड़कों पर बौराता रहा । पटना में दोस्तों को इस बात की ख़बर अभी नहीं थी । Wapp तो था नहीं । न तो मैं उनको face करना चाहता था । क्या कहेंगे ये तो ज़ाहिर सा था ... 

' बड़ा होशियार बनने चला था , इत्यादि , इत्यादि , जर्मनी जाएगा , हं ! ' 


इसी उदासी में एक सरदार दोस्त ( खुद NZ migrate कर गया ) ने सुझाव दिया कि मैं जर्मनी में उससे क्यों नहीं बात करता हूँ जिसने मुझे job दिया । कहूँ कि मुझे कोई कारण समझ में नहीं आता क्यों Visa नहीं मिला । 


Doctor ( chief ) पता नहीं क्या कर पाएगा , ये तो embassy का मामला है । मैं सोच रहा था । 


मैंने सोचा ठीक है , चलो हर्जा क्या है । इसी phone के विषय पर बात उठी थी ।

फोन के लिए , ख़ास कर international call के लिए post office जाना पड़ा । उस समय सड़कों पर STD वग़ैरह नहीं था ।

जनपथ में post office में लाइन पर लगिए । लम्बी क़तार होती थी । वो फोन लगाएगा , connect होने पर बात कीजिए , कट गया ( अक्सरहाँ ) होता था तो फिर से लाइन में आइए ।


अच्छा अब बताइए कि जो लोग उन दिनों स्वर्ग सिधार गए , उनको कहा जाय कि आज कल धरती पर Wapp की व्यवस्था है , रज़ाई में घुसे मुफ़्त में दुनियाँ में कहीं भी फ़ोन कर सकते हैं , यहाँ तक कि राम चरित्र शर्मा के गाँव चहल भी ! उनके पास faint करने के अलावा कोई चारा होगा ! 


दो दो तीन तीन घंटा दो दिन बिताए फोन के लिए , एक चौथाई बात हुई । और पैसे भी बहुत लगते थे international call के । फिर मुझे जर्मन बोलने और समझाने में देर भी लगे । तीसरे दिन पूरी बात हो गयी , chefartz ( chief doctor ) से , जो मुझे कहना था कह दिया । 


उसने कहा तुम इंतज़ार करो । दूसरा job मत लेना । Claus Fischer नाम था , Anesthesia का head . 

' दूसरा job मत लेना !' ये बात सुनी क्या मैंने क़ानों से ? ये तो सूर्य किरण सी प्रखर और उत्साहित करने वाली बात थी । मुझको लगे ऐसे ही बोल दिया । किसी Doctor का विदेशी dept में और foreign country में embassy पर क्या influence होगा ! 


ख़ैर , तो बाद में पता चला chief ने क्या किया था । 

मैं दिल्ली में अपनी साँसे गिनूँ , रोड रोड , जान पहचान के लोगों के दफर में हाज़िरी देता चलूँ । 


बरुन नायक , स्कूल में हमसे एक साल junior eye dept में PG कर रहा था । All India institute में । उसी के कमरे में फ़र्श पर सोता था और उसके mess में शाम को खाना । दिन भर सड़कों पर बौराना । न घर का न घाट का । Connaught place की सारी दुकानों के नाम एक के बाद एक मुझे कंठस्थ थे । 

१९९३ में बीबी के साथ दिल्ली में था , सारे दुकानों के नाम गिना दिए । दो तीन ही बदले थे । बीबी ने कहा तुम्हारे पागल होने में ज़्यादा देर नहीं है , दुकानों के नाम याद करने का क्या फ़ायदा ! मैंने कहा , मैं अगर ये नहीं करता तो तुम नहीं मिल पाती ज़िंदगी में ! 


५-६ हफ़्ते के बाद मैं पटना चला आया ऊब के । एक हफ़्ते के अंदर बरुन का message आया एक आदमी के मार्फ़त । मेरे लिए embassy से चिट्ठी आयी है उसके add पर । 

मुश्किल से बरुन से बात हो पायी फोन से । मैंने कहा खोल के पढ़ो । " Your Visa is ready , please bring your passport ".


तब क्या था , सिक्का फूटा । गाँव गया माँ से मिला । माँ ने कहा : " एतना दूर जाय के कौन ज़रूरत है नौकरी ख़ातिर !"

मैंने कहा , तू सिर्फ़ ज़िंदा और स्वस्थ रह , सबके देखा देवै !


अब तो संक्षेप कर ही दूँ । १९७९ मार्च से मैंने Germany में नौकरी शुरू की , दो महीने के अंदर जो पैसे मिलते थे , लगा की मैं तो धनी हो गया ! तब से ग़ुरबत ने मेरा घर कभी नहीं झांका । hallelujah !


बता देता हूँ अंत में कि chief ने क्या किया था जो मुझे बाद में पता चला ।

उसने state govt को चिट्ठी लिखी और फोन भी किया ।जर्मन लोग बहुत direct होते हैं ।  Gist यही था कि state chancellor को कहा : मज़ाक़ छोड़ो , मुझको doctor की ज़रूरत है और ये हिंदुस्तानी लड़का smart लगा , जर्मन भी अच्छा बोल लेता है । दिल्ली में उस arshhole ( translation की तो ज़रूरत नहीं है ) को कहो कि visa issue करे , मुझको लड़का एक महीने के अंदर चाहिए ! 


एक महीना तो नहीं , क़रीब दो महीने लगे और मैं Bremen में Beck's beer का जायज़ा लेने लगा । 

नमस्कार , Sayre निवासी , coffee with RC

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